ना चाहू मे लहू के रंग
ना चाहे तू नफरत की दीवारें
फहर कुओं आशियाना हमारा जलता है
तेरे मजहब से भय लगता है
यह द्वेष का छलावा
दहशत के लिए फ्हैलाया है
भाषा धर्म के नाम पे
अहिंसा के लिए उकसाया है
फिर कुओं तलवारें लिए
हम सीमा बनाकर खड़े हैं
अक देह के अंग होकर
कट रहे और कट रहे है
भीतर से सुल्जना आग
दुश्मन की यह नीत है
पर शिक्व्वों को प्रेम से सुलझाने मे
इस देश की जीत है
ना चाहे तू नफरत की दीवारें
फहर कुओं आशियाना हमारा जलता है
तेरे मजहब से भय लगता है
यह द्वेष का छलावा
दहशत के लिए फ्हैलाया है
भाषा धर्म के नाम पे
अहिंसा के लिए उकसाया है
फिर कुओं तलवारें लिए
हम सीमा बनाकर खड़े हैं
अक देह के अंग होकर
कट रहे और कट रहे है
भीतर से सुल्जना आग
दुश्मन की यह नीत है
पर शिक्व्वों को प्रेम से सुलझाने मे
इस देश की जीत है